Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -79)
एक ते एक लौं कानन में रहें
ढीठ सखा सब लीने कन्हाई।
आवत ही हौं कहाँ लौं कहीं
कोउ कैसे सहै अति की अधिकाई।।
खायौ दही मेरो भाजन फोर्यौ न
छाड़त चीर दिवाएँ दुहाई।
सोंह जसोमति की रसखानि ते
भागें मरु करि छूटन पाई।।
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